Saturday, April 16, 2011

निरंतर...

जलते ह्रदय के आँच की,
आज बना लाया शाळा,
दग्ध ह्रदय का तुच्छ भेंट,
है दिल तुझको देनेवाला,

जग की पीड़ा जग जाने,
क्या जाने यह मतवाला,

अभिवादन करता है तुमको,
सबसे पहले यह दिलवाला...

                       दिलवाला...

1 comment:

  1. माफ़ करेंगे.. एक लम्बी बीमारी के बाद फिर से आपके सम्मुख हो पाया हूँ, अपने पूज्य की कुछ रुबाइयों को लेकर,
    मुझे उम्मीद है की आज मैंने स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन की रुबाइयों को ताज़ा कर दिया है..
    धन्यवाद्...!

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