Thursday, October 11, 2012

जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई


चरण स्पर्श !!
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई आपको, हम अपने पुजनिये गुरु जी की कविताओं पर आधारित कुछ पन्तियाँ लिख रहे है जो उम्मींद करते है की आपको "बाबु जी" की सुगन्धित यादों की तरंगो में एक और तरंग बढ़ाने में शायद मदगार हो, अगर ऐसा मुमकिन हो पाया तो हम खुद को खुशनसीब समझेंगे...
आपके शुभाशीर्वाद की चाह में निरंतर...
आपका,

रोज rose की इक शाला,
दे जाती चंचल बाला
हरे पत्तों की शाख पर,
लिखा होता कुछ काला-काला

दिवस मिलन का और नाम भी,
उस पर अक्सर होता है

जग रोज rose से प्यार कमाता,
पर नाम कमाता ये दिलवाला...

सूरत-सीरत की बात चले जब,
याद आती है, चंचल बाला
शाह-मुमताज़ की यादों में,
ताज बना सुनहरा शाला

ख्यालों के नए इमारत को,
ताज बनाते जगवाले

हर वक़्त ख्यालों के खंडहर में,
एक याद बनता है दिलवाला...

Tuesday, October 11, 2011

निरंतर...

प्रियतम तू मेरी डोर है,
मैं तेरा सतरंगा शाळा,
तेरा प्यार है इतना कोमल,
अक्सर याद आनेवाला,

मैं तुझको जी भर के देखता,
जखम मुझे तू ही देता,

एक-दुसरे से मिल कर ही,
आज रहेगा ये दिलवाला...
                        दिलवाला...

Sunday, April 17, 2011

निरंतर...

प्यार तुझे तो यार मै जलकर,
गर्म बनूँगा मैं शाळा,
दीवाना तेरे प्यार में पागल,
मरकर भी जीने-वाला,

जीवन का जल तो तेरे,
ऊपर कब का जला चूका,

बनती है जैसे शाख-राख में,
आज बनेगा ये दिलवाला ...

Saturday, April 16, 2011

निरंतर...

जलते ह्रदय के आँच की,
आज बना लाया शाळा,
दग्ध ह्रदय का तुच्छ भेंट,
है दिल तुझको देनेवाला,

जग की पीड़ा जग जाने,
क्या जाने यह मतवाला,

अभिवादन करता है तुमको,
सबसे पहले यह दिलवाला...

                       दिलवाला...

Sunday, December 12, 2010

...पृष्ठ भूमिका...

                           "मुहब्बत के भी अपने कुछ उसूल होते है...
                         ये वो नगमा है जो हार साज पे गया नहीं जाता..."

प्रियतम,
   मुझे तुम्हारी बेवफाई में कुछ कमी नज़र आ रही है,प्लीज़...प्लीज़ ऐसा मत करना... तुम्हे मेरे प्यार और तुम्हारे बेवफाई की कसम....
      तुम्हारी बेवफाई ही तो मेरे कलम की स्याही है, तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण ही तो दिलवाले के नवीनता बरक़रार है..... क्या तुम मेरी इस नवीनता को मार देना चाहती हो..? नहीं न...|
मैं जनता हूँ तुम ऐसा नहीं चाहोगी...अच्छा चलो, मुझे बताओ की प्यार और बेवफाई में क्या फर्क है...?बस इतना ही न की बेवफाई हमेसा प्यार के बाद की जाती है.... वरना सबकुछ वही सोते-जागते,वही यादों का सिलसिला, वही ज़ख्मों की टीश...है न...और तुम मुझसे प्यार करती हो तभी तो बेवफाई करती हो......
                                जानती हो.... मैंने एक शौख पाल रखा है, जेब में आतिश रखने का | तुम पूछोगी नहीं क्यों ?.... मैं जब भी अपने-आप को तन्हाई के महागर्त में महसूस करता हूँ..तब इसकी तिल्लियों को जलाया करता हूँ, इसकी थरथराती हुई लव में मुझे तुम्हारे थरथराते हुए होठ ..जो मुझसे कुछ कहने को आतुर है, दिखाई देते है, एक पल के लिए ऐसा महसूस होता है की मानो मेरे हाथों में तुम्हारा चेहरा समाया हुआ हो...और तुम्हे प्यार करने की मेरी मदिर पिपासा को थोड़ी ठंढक सी महसूस होती है...और फिर वो बीती हुई साड़ी बातें..वो दृश्य...मेरी आँखों के सामने किसी चलचित्र की भांति दृश्यमान हो उठते है.....
                              तुम्हारे वो तब्बसुम बिखेरते होठ...सचमुच ज्वाला ही तो है मेरी आतिश के,और तो और मेरी प्यार के उबाल से उत्पन्न बुलबुले...हाँ ये सारे के सारे छले ही तो हैं मेरे दिल के जो तुमने दिए है....
       अब तो विगत स्मृतियों का हार दर्द मेरे लिए नशा बन चूका है, और इस नशीले अध्याय में जब चरागों को भी नींद आने लगी है तब भी लेखनी तुम्हारी ही बाते अंकित कर रही है.....और बता रही है की...
                उनसे जब-जब भी मुलाकातें हुई,
                 सारी-सारी रात बरसातें हुई,
                  मेरी दुनियां में अँधेरा हो गया,
                  गैर के घर चांदनी रातें हुई..
               जाने कब पहलू से उठ कर चल दिए...
               रात भर फिर दीवारों से बातें हुई....

प्रियतम,
          तेरी यादें मेरे धमनियों में लहू बन कर दौड़ रही है, और एक मुद्दत से मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहे है... जिससे मेरे दिल की महफ़िल रोज़ ख्वाबों में सजाती है, यक़ीनन वक़्त की दहलीज़ पर कोई आएगा जो अपने साथ तेरे दिल की वफ़ा और मेरे दिल का चैन लाएगा...
             जैसे-जैसे रात की दुल्हन पायल छंकाएगी, मुझे मेरी तन्हैयाँ आवाज देकर बुलाएंगी और मेरे बेचैन सी आंखों में एक ख्वाब उतरेगा... रेत की इन्ही बेजान दीवारों के बीच... होंगे, मैं..... और मेरी तन्हाई....बस.....|

प्रियतम,
         मेरी लेखनी टूटी जा रही है, अब टूटी ...टूटी...लो टूट ही गई...| जरा सोचो, तुम्हारे दर्द को जब ये बेजान बस्तुएं नहीं झेल पा रही, तो हम शारीर-धारी रूहों की क्या औकात...?  जानती हो ऐसा क्यों हुआ... तुम्हारे प्यार के कारण.....
                      वैसे ये सच ही है न की ....... बदल स्वयं का विलय बारिश में, बारिश अपनी बूंदें नदियों में, नदी अपनी जलराशि सागर में प्रवाहित कर के एक हो जाती है...लेकिन जरा सोचो वो सागर भी तो अपनी असीमित जलराशि किसी के चरणों में विलय करने की ख्वाहिश रखता होगा...?
             अब पतंगों को ही देखो... प्रेम में वसीभूत ये पागल अपना विलय दीपक में, दीपक अपना विलय रात्रि में, रात अपना विलय सूर्य में करके उससे मिल कर एक हो जाती है.... क्या सूर्य का दिल किसी ऐसे को नहीं तलाशता होगा, जिसकी सांसों में एक पल के लिए ही सही स्वयं का विलय कर समर्पण का स्वार्गिक सुख प्राप्त कर सके....

प्रियतम, तुम......
              तुम नहीं जानती की तुम मेरे लिए क्या हो...
                                           "गुलाब के लिए कांता है | काँटों के लिए गुलाब है..?"
इन देनो वाक्यों में कौन ज्यादा महत्ता रखता है... खैर तुम्हारे लिए जो भी हो, मैं यह समझता हूँ की वह गुलाब काँटों के लिए ही है क्योंकि... काँटों की उपलब्धता, उसकी सार्थकता को सिद्ध करने का सिर्फ एक जरिया है गुलाब...वरना काँटों को गुलाब की क्या जरुरत.... है न..| क्यों ... फंस गई न द्वन्द में... मुस्किल हो गया न फिर गुलाब के लिए.... लेकिन ऐसा नहीं है, गुलाब की सुन्दरता को सिद्ध कने का मौका कांटे ही है....क्योंकि...
                                 तूम देखना जिस गुलाब के पौधे में ज्यादा कांटे हो, वो गुलाब औरों की अपेक्षा ज्यादा खुबसूरत होता है, ठीक वैसे ही जैसा चकोर चाँद को भेंट करता है... और चाँद का वो बेरुखापन यह चकोर को जरा भी बुरा नहीं लगता ... और मुझे भी नहीं...और अब जब तन-तन कर तुम अपना तीर निशाने पे मारती हो तो दर्द तो बहुत होता है, लेकिन शुक्र है उस उपरवाले का जिसने दिल के इस दर्द को अब तक जिन्दा रखा है.....|
                           खैर हम बात कर रहे थे..गुलाब और कांटे की, उस वक़्त क्या होता होगा, तुमने देखा है, जब कोई श्यामल भमरा कुंजन में किसी गुलाब के इर्द-गिर्द मंडराता है... कांटें भंवरे के पंखों को तोड़ देते है और उसके बदन को तार-तार कर देते है, तब भी वो गुलाब अटखेलियाँ करती है, और अपनी कामयाबी का जश्न बहारों के साथ हस-हस कर मानती है....
        जरा देखो तो उसका गुरुर...उसका गर्व... अरे उसे तो तलाश होती है किसी ऐसे की जो उसके खूबसूरती की तारीफ करे और स्वयं भी सुन्दर हो, ताकि उस बहार में खिले दुसरे फूलों की सोसाईटी में अपनी और अपनी सुन्दर जोड़ी के तारीफों की पूल बांध सके, उसे अहसास तो तब होता है जब वक़्त के साथ प्यार से तितलियाँ उसका पराग ले कर उड़ जाती है और छोड़ देती है उसे... तनहा... अकेला... बेसहारा.....|और फिर धीरे-धीरे उसकी पंखुडियां जमीं पर गिर जाती है लेकिन उस वक़्त भी भौरा उसके इर्द-गिर्द आता है, कुछ देर रुकता है और फिर चला जाता है दुबारा आने के लिए, दूसरी कलियों को दास्ताँ सुनाने के लिए.... आगाह करने के लिए...... अपने प्यार को समझाने के लिए.....|

अंत में यही कहूँगा-----
" परवानो की खैरियत हर शमां से होती है,
                     हुश्न-ए-ताज की ख्वाहिश हर जुबान को होती है,
                                    शमां जलाती है परवाने को रु-बी-रु होकर,
                                             शमां-ए-शोहरत तो सिर्फ फिजां से होती है.....|
इसी के साथ
तुम्हारे नयनो के ध्यान में
निरंतर तुम्हारा.....

दिलवाला....

                                                                                                                         क्रमश:                                  

... बच्चन की मधुशाला और ये दिलवाला ...

आधारतः ये रुबाईयाँ स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन (जो मेरे पूज्य आशा स्रोत और प्रेरक है..) के द्वारा लिखित 'मधुशाला' पर आधारित है...|
                             इसकी भूमिका में मैंने एक हल्का नयापन लाने की कोशिश की है | इसमें मैंने कुछ अपने दिल की और कुछ अन्यत्र से संकलित की हुई रचनाओं को लिपिबद्ध किया है | आशा है आप सबों को पसंद आएगी...और उम्मीद करता हूँ,की आप अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मुझे प्रोत्साहन देते रहेंगे...                                                                                                                                                धन्यवाद्...!
आपके ध्यान में निरंतर
  आपका..
दिलवाला...